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मोहन ‘राज में…सुशासन की धार | CM Mohan Yadav

 

जैसा नाम वैसा शासन का आगाज कर मुख्यमंत्री डॉ. Mohan Yadav ने प्रदेश की साढ़े आठ करोड़ आबादी का मन मोह लिया है। मुख्यमंत्री मोहन यादव का अब तक का कार्यकाल ऐसा रहा है जिसमें सुशासन की पूरी झलक देखने को मिली है। जहां उन्होंने विकास कार्यों का गति दी है, वहीं नए कार्यों का भूमिपूजन और लोकार्पण भी किया है। साथ ही जनता के मन में अपनी सरकार होने का भाप भरा है। यानी मोहन यादव सरकार की अपनी लकीर बड़ी करने की कोशिश की है। यानी भाजपा की नई सरकार के सीएम मोहन यादव का स्टाइल थोड़ा डिफरेंट है। जीरो टॉलरेंस नीति पर काम कर रहे सीएम यादव का प्रदेश में एक महीने का भी समय नहीं हुआ लेकिन अभी तक अपनी गलती के चलते दो कलेक्टर कुर्सी गवां चुके हैं। सीएम मोहन यादव के ऐसी नीति की विपक्ष भी तारीफ करते नहीं थक रहा है। नई भाजपा सरकार में मुख्यमंत्री पद की दौड़ में डॉ. मोहन यादव को शुरू में भले ही डार्क हॉर्स माना जा रहा हो, लेकिन अपने 30 दिन के कार्यकाल में उन्होंने जिस तेजी से और जिस संकल्प शक्ति के साथ फैसलों की झड़ी लगा दी है, उससे राज्य में साफ संदेश गया है कि कोई उन्हें हल्के में न ले।
पद संभालने के पाद नए मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव के सामने वही चुनौतियां थीं, जो किसी भी नए नवेले और अचर्चित मुख्यमंत्री के सामने होती है। उन्हें तय करना था कि वो पुरानी सरकार की छाया और प्रशासनिक शैली से बाहर निकलकर नई पिच पर कैसी बैटिंग करते हैं। जनता देख रही है कि उनकी अपनी सोच, संघ से तालमेल, भाजपा के एजेंडे को क्रियान्वित करने का संकल्प, नौकरशाही में धमक कायम करने का जज्बा और प्रशासनिक तंत्र को नए नई और सही दिशा में हांकने की क्षमता कितनी है। इस दृष्टि से इतना तो कहा ही जा सकता है कि सीएम डॉ. मोहन यादव ने इस वन डे मैच के शुरूआती ओवर दमदारी से सधे हाथों से खेले हैं और इस बात के पुष्ट प्रमाण भी हैं। मसलन मुख्यमंत्री बनने के तत्काल बाद जारी उनका पहला आदेश प्रदेश में धार्मिक स्थानों पर जोर से लाउड स्पीकर बजाने और खुले में मांस और अंडे की बिक्री पर सख्ती से रोक। इस फैसले को यूपी में योगी आदित्यनाथ सरकार के दूसरे कार्यकाल के मंगलाचरण की नकल के रूप में भी देखा गया, लेकिन धार्मिक स्थलों और अन्य कार्यक्रमों में कई बार बहुत ज्यादा शोर और कानफोड़ू लाउड स्पीकर आम जनता की परेशानी का सबब बन गए थे। चूंकि मामला धार्मिक था, इसलिए इसके खिलाफ कोई बोलने की हिम्मत नहीं कर पाता था।

 

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