मध्य प्रदेश

भाजपा और कांग्रेस में शह_ मात की जंग कया गुल खिलाएंगे हारे हुए विधायकों पर खेला हुआ दांव भितरघातियों से निपटना होगा अहम

भोपाल। भाजपा ने राजधानी भोपाल,ग्वालियर और मुरैना सहित कुछ हारे हुए विधायकों को लोकसभा टिकट देते हुए उन पर दांव लगाया है। लोकसभा चुनाव में इन नामों के आते ही दबे स्वर में विरोध हुआ लेकिन पार्टी के अनुशासन के चलते सब कुछ वयस्थित रहा। हालांकि कहीं ऐसी सीटों पर जीत भीतरघात ना हो पार्टी ने इससे निपटने के लिए अपनी रणनीति पर काम शुरू कर दिया है। वहीं कांग्रेस ने भी कुछ हारे हुए विधायको पर भरोसा जताया है। भाजपा में टिकट की घोषणा के बाद विन्ध्य क्षेत्र की सीधी लोकसभा सीट पर विरोधी स्वर मुखर करते हुए राज्यसभा संासद अजय सिंह ने आनन-फानन में इस्तीफा देते हुए निर्दलीय चुनाव लड़ने का विगुल बजा दिया। बी जे पी ने विंध्य की सीधी सीट से राजेश मिश्रा को प्रत्याशी बनाया है। मिश्रा का यह दूसरा चुनाव है। इससे पूर्व वे बसपा से विधानसभा चुनाव लड़ चुके है। मिश्रा 2009 से भाजपा से जुड़े है। मिश्रा को विधानसभा चुनाव में टिकट नहीं मिला तब उन्होंने आक्रामक रूख रखते हुए पार्टी से त्यागपत्र भी दे दिया था। मिश्रा ने त्यागपत्र देकर कहा कि पार्टी को मेरी आवष्यकता नहीं है। मैं बोझ बनकर काम कर रहा था। हालांकि बाद में उन्होंने इस्तीफा वापस ले लिया। यह घटनाक्रम जब हुआ तब पार्टी ने सीधी से रीती पाठक को विधानसभा चुनाव में उम्मीदवार बनाया था। वहीं सतना लोकसभा सीट से गणेश सिंह पर पार्टी ने विस्वास जताया है। जबकि गणेश सिंह हाल ही में चुनाव हार चुके है। यदि महाकौशल की बात की जाए तो टिकटों की घोषणा होते ही जबलपुर लोकसभा सीट से आशीष दुबे का नाम लोकसभा प्रत्याशी के तौर पर घोषित होते ही आशीष के खिलाफ अजय विश्नोई ने ट्वीट करते हुए लिखा कि आशीष ने विधान सभा चुनाव में पार्टी के विरोध में काम किया था। हालांकि पार्टी को जीताना कार्यकर्ता का काम हैं। विश्नोई ने पार्टी के खिलाफ विरोध पहली बार जाहिर नहीं किया पूर्व में विधानसभा चुनाव के वक्त एवं शि वराज सरकार के खिलाफ भी समय_समय पर विरोध प्रकट करते रहे है। मालवा अंचल में रतलाम सीट पर गुमान सिंह डामोर को टिकट नहीं मिलने से कुछ असंतोष तो है लेकिन असंतोष दबे स्वर में देखने को मिल रहा है। भाजपा किसी भी मोड़ पर लोकसभा चुनाव में रिस्क नहीं लेना चाहती है। इसलिए उसने आदिवासी बाहुल्य क्षेत्र में महिला उम्मीदवार अनीता चौहान को चुनावी समर में उतारा है। वहीं रतलाम की बात की जाए तो गुमान सिंह डामोर पूर्व में विधायक भी रह चुके है। जबकि अनीता चौहान अलीराजपुर से है ऐसी स्थिति में यह कहना जल्दबाजी होगी कि उन्हें रतलाम,झाबुआ बैल्ट से कितना सपोट मिलेगा। हालांकि मालवा में भाजपा का बोलबोला सदियों से रहा है। कांग्रेस का उम्मीदवार भी अभी घोषित नहीं हुआ है। हालांकि यदि भितरघात हुआ तो परिणाम आने के बाद ही स्पष्ट होगा। हालांकि पूर्व में गुमान सिंह डामोर की जीत कांग्रेस के नेता जेवियर मेड़ा के निर्दलीय चुनाव लड़ने के बाद आसान हुई थी।

धार लोकसभा सीट से सावित्री चौहान को पार्टी ने टिकट तो दे दिया। लेकिन उनकी राह को आसान बनाने के लिए भाजपा ने सटीक दांव खेलते हुए गरम लोहे पर वार कर कांग्रेस के नेता गजेन्द्र राजूखेड़ी को भाजपा में शामिल कर राह आसान कर ली है। राजूखेड़ी को त्यागपत्र देने के बाद कांग्रेस ने भी मनाने का प्रयास किया कमलनाथ से बात भी हुई, लेकिन राजूखेड़ी भाजपा के भंवरजाल से निकल ना सके। हालांकि मौजूदा सांसद छतर सिंह दरबार का टिकट काट कर पार्टी ने महिला चेहरे को मौका दिया हैं। धार में विधानसभा चुनाव में परिणाम बहुत अच्छे नहीं रहें।
नक्सल प्रभावित बालाघाट जिले से मौजूदा सांसद ढ़ाल सिंह बिसेन का टिकट काटकर नए चेहरे को टिकट दिया गया है। भाजपा ने बालाघाट से भारती पारधी पर विष्वास जताया जबकि भारती के स्वागत समारोह कार्यक्रम में मौजूदा सांसद ढ़ाल सिंह बिसेन का फोटो ही गायब दिखा। जिसका विरोध करते हुए मौजूदा सांसद ने कहा कि फोटो गायब कर दिया अभी से। हालांकि भाजपा ने ढ़ाल सिंह बिसेन के तिलिस्म से बाहर आकर युवा चेहरा और पार्षद भारती पर विष्वास जताया।
ग्वालियर एवं चंबल संभाग में भाजपा ने संभवतः जातिगत समीकरण को आधार मानते हुए ग्वालियर एवं मुरैना से विधानसभा चुनाव हार चुके भारत सिंह कुशवाह और शिवमंगल सिंह तोमर को लोकसभा चुनाव लड़ने के लिए चुनावी समर में उतारा है। वहीं कांग्रेस ने भी ग्वालियर से प्रवीण पाठक और मुरैना से सत्य पाल सिकरवार को मैदान में उतारा है।हालांकि इन दोनो ही उम्मीदवारों की उम्मीदवारी को लेकर भाजपा एवं कांग्रेस के कार्यकर्ता एवं जनमानस संशय में दिख रहा है कि पार्टी ने यह निर्णय किस आधार पर किया है। ग्वालियर में लंबे समय से भाजपा का सांसद रहा है। लेकिन वर्तमान उम्मीदवार की उम्मीदवारी को देखकर लोग कयास लगाने लगे है कि सदियों पुरानी महापौर की कुर्सी कांग्रेस ने छीन ली। कहीं ऐसा ना हो कि सांसद की कुर्सी कहीं खिसक ना जाए। बहरहाल,यह तो महज कयास है मुकाबला होने के बाद ही तय होगा की उट किस करवट बैठैगा। मुरैना में शिवमंगल सिंह की स्थिति भी बहुत सुदृण नहीं दिख रहीं है। लेकिन कांग्रेस के प्रत्याशी के मैदान में आने से मुकाबला रोचक होने की संभावना बन गई है। वहीं भिंड.दतिया लोकसभा सीट से संध्या राय पर पार्टी ने पुनः विश्वाश जताया है। जबकि कांग्रेस ने अपने पुराने नेता फूल सिंह बरैया को मैदान में उतारा है। बरैया की जमींनी पकड़ भी कमजोर नहीं है। पार्टी का साथ भरपूर मिला तो बरैया के लिए दिल्ली दूर नही। गुना लोकसभा सीट पर मौजुदा सांसद के पी यादव का टिकट काटकर पार्टी ने ज्योतिरादित्य सिंधिया को प्रत्याशी बनाया है। जब कि के पी यादव दोबारा चुनाव लड़ने का मन बना चुके थे। ऐसी स्थिति में भितरघात की संभावना ज्यादा दिखाई दे रही है। हालांकि एतिहात के तौर पर सिंधिया ने मौजूदा संासद के भाई को कुछ समय पूर्व भाजपा में षामिल कर लिया है। जब कि सिंधिया गुना से एक बार लोकसभा का चुनाव हार चुके यदि मौजूदा संासद ने सिंधिया का साथ नहीं दिया तो परिणाम कुछ भी सामने आ सकता है। हालांकि भाजपा का मैनेजमेंट काफी मजबूत है और कार्यकर्ता भी समर्पण भाव से चुनाव में जुटा हुआ है। मध्यप्रदेष से सभी 29 सीटों को जीतने का लक्ष्य भी तय हो सकता है। क्योंकि कांग्रेस के पास मैनेेजमेंट और नेतृत्व का अभाव दिख रहा है।
बहरहाल,लोकसभा की चुनावी वेला में मध्यप्रदेश भी शामिल हो चुका है। नेताओं में खासा उत्साह भी देखने को मिल रहा है। लेकिन पार्टी के पास बढ़ा टास्क है कि भितरघातियों से लोकसभा प्रत्याषियों को बचाए रखें। जिससे 29 लोकसभा सीट का नारा साकार हो सकेए अन्यथा विरोध.अवरोध के चलते कोई सीट हाथ में से खिसक ना जाए। हालांकि यह चुनावी वेला है उट किस करवट बैठेगा यह तो परिणाम ही बताऐगे अभी तो महज कयासों का बाजार गर्म है।

इनका कहना है देश में प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी और भाजपा की लहर है। मिशन 29 के तहत लोकसभा चुनाव में छिंदवाड़ा में भी कमल खिलाएंगे। सरकार ने हमेशा आदिवासी समाज का साथ दिया हे। सभी 29 सीटों पर कमल खिलना सुनिश्चित है।

*आशीष अग्रवाल मीडिया प्रभारी भाजपा मध्य प्रदेश*

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