भोपाल। सरकार द्वारा घर-घर नल से जल पहुंचाने की मंशा पर लोक स्वास्थ्य यांत्रिकी विभाग (पीएचई) के अफसरों ने बड़ा खेल कर डाला है। जिसकी वजह से अब भी लोगों को पानी के लिए परेशान होना पड़ रहा है। इस दौरान विभागों के अफसरों ने 283.42 करोड़ का खेल कर दिया। यह आंकड़ा तब और बढ़ जाएगा, जब सभी संभागों की योजनाओं का परीक्षण किया जाएगा।
दरअसल भारत के नियंत्रक महालेखा परीक्षक (सीएजी) ने पीएचई ने विभाग की 58 में से महज 18 योजनाओं की 10 संभागों की ही जांच की है। अगर विभाग की सभी योजनाओं की पूरे प्रदेश की जांच की जाती तो यह गड़बड़ी का आंकड़ा कई गुना बढ़ जाता। गौरतलब है कि पाइप्ड जलापूर्ति योजना के क्षेत्र में सभी घरों में नल कनेक्शन देने थे। पीएचई के 9 संभागों के तहत 35,695 घरों में 26,887 में ही नल कनेक्शन दिए गए थे। योजनाएं पूरी हो भी गई है, लेकिन अब तक लोगों को पूरा पानी नहीं मिल रहा है। यही नहीं परीक्षण में पता चला है कि दर्जनों गांवों में तो तय मानक के अनुसार पानी ही नहीं मिला है। उधर, नरहेला, मानपुर, उदगंवा और निवाड़ी के 82 गांवों में ठेकेदारों ने दिसंबर 2020, फरवरी 2021 और अप्रैल 2021 में तो पानी ही नहीं दिया। जिसकी वजह से ग्रामीणों को सरकार की योजना का फायदा तक नहीं मिल सका है। यही नहीं इस दौरान उमरिया के मानपुर बहु-ग्राम योजना में 49.08 करोड़ का काम ठेके पर दिया गया। यहां 9820 नल कनेक्शन दिए जाने थे। लेकिन यहां पर योजना लागू होने के बाद नल कनेक्शन तो उतने ही रहे. लेकिन डिस्ट्रीब्यूशन लाइन और वाटर पंपिंग स्टेशन में बदलाव कर डाला जिससे खजाने को 8.09 करोड़ रुपए का अतिरिक्त भुगतान करना पड़ा।
बैंक गारंटी तक नहीं ली गई
सतना-बाणसागर परियोजना में ठेकेदार ने 1434.41 करोड़ का टेंडर डाला जो अनुमानित लागत से 20.64 फीसदी कम था। इसके लिए 80.74 करोड की बैंक गारंटी ठेकेदार से ली जानी थी, लेकिन उसे लिया ही नहीं गया। दतिया और शिवपुरी में बसई योजना के लिए 62.92 करोड़ का टेंडर ठेकेदार ने डाला। इसके लिए 4.04 करोड़ की बैंक गारंटी ठेकेदार से नहीं ली गई।
इस तरह से किया गया गड़बड़झाला
रिपोर्ट में कहा गया है कि 2018-19 और 2020-21 में अफसरों ने 1825.04 करोड़ रुपए की व्यय राशि में से 1012.70 करोड़ भुगतान की प्रत्याशा में ही निकाल लिया गया। 2019 में शुरू हुई केन्द्र सरकार के जल जीवन मिशन में 2017 में चालू हो चुकी बांकपुरा और 2018 से चल रही सतना-बाणसागर योजनाएं को दर्शा दिया गया। इस मिशन में आधा पैसा केंद्र सरकार दे रही थी। पहले से चल रही ये दोनों योजना राष्ट्रीय कृषि और ग्रामीण विकास बैंक और न्यू डेवलपमेंट बैंक से वित्त पोषित थी। पहले से तय योजना में जो काम होने थे, उसके नाम पर अफसरों ने जल मिशन की राशि से ठेकेदारों को 1.12 करोड़ और 43.79 करोड़ का भुगतान कर दिया। इसी तरह से जीएसटी लागू होने की तारीख 1 जुलाई 2017 के पहले विभाग ने 17 टेंडर बुलाए थे। जिसमें उस समय लगने वाले कानून के तहत सभी कर ठेकेदार को देने थे। ठेकेदारों ने भी अपने टेंडर में 12.5 फीसदी के टैक्स को शामिल करते हुए टेंडर डाले थे। संयंत्रों को उत्पाद शुल्क की छूट के बाद भी विभाग के अफसरों ने उन्हें उत्पाद शुल्क के साथ भुगतान कर दिया, साथ ही छूट का प्रमाण पत्र भी जारी कर दिया। इस तरह से अफसरों ने ठेकेदारों को 72.90 करोड़ का लाभ पहुंचा दिया। पीएचई की तकनीकी समिति ने 2018 में ओवरहेड टैंक के निर्माण की दर तय की थी। लेकिन राजगढ़, रायसेन, बैतूल और मंडला में इस दर के बजाए बिल ऑफ क्वांटिटी को अपनाया। जिससे 78.51 लाख की लागत बढ़ गई। यही नहीं दमोह, सतना और मुरैना में पाइप्ड योजनाओं के ट्रायल रन के पूरा होने के पहले ही 43.21 लाख का भुगतान कर दिया गया।
यह मिलीं गड़बडिय़ां
रिपोर्ट में बतायागया है कि नल जल योजना में 491 1. गावा 373 गांवों की ही डीपीआर बनाई। इसमें से 273 को स्वीकृति मिली। बाकी के 107 गांवों की डीपीआर बनाने 4.96 करोड़ खर्च हुए, लेकिन योजना ही शुरू नहीं की गई। इसी तरह से 80 योजनाओं की डीपीआर