मप्र की डॉ. Mohan Yadav सरकार संभवत: प्रदेश की सबसे अधिक दिग्गज नेताओं से भरी सरकार है। दिग्गज नेताओं वाली सरकार में प्रदेश के सबसे महत्वपूर्ण और बड़े विभागों की जिम्मेदारी लेकर मोहन यादव अब तक के सबसे पावरफुल मुख्यमंत्री बन गए हैं। इसकी वजह उनके पास सामान्य प्रशासन, गृह, जेल और जनसंपर्क विभागों जैसे 10 अहम विभाग होना है। जानकार कहते हैं कि मुख्यमंत्री समेत इस मंत्रिमंडल में कुल 31 सदस्य हैं, लेकिन महत्वपूर्ण विभागों का बंटवारा सिर्फ सात मंत्रियों के बीच ही किया गया है इनमें दो उप मुख्यमंत्री- राजेंद्र शुक्ला और जगदीश देवड़ा के अलावा कैलाश विजयवर्गीय, प्रहलाद पटेल, राकेश सिंह और राव उदय प्रताप सिंह शामिल हैं। मोहन यादव के मंत्रिमंडल को देख कर स्पष्ट रूप से समझ में आता है कि संगठन का भाव प्रभावी है। जबकि शिवराज सिंह चौहान में मंत्रियों को अपनी तरह से काम करते देखा गया था।
मप्र में नई सरकार के मुखिया डॉ. मोहन यादव की सरकार दिग्विजय सिंह, शिवराज सिंह चौहान और कमलनाथ से अलग है। साल 2018 में जब कमलनाथ के नेतृत्व में कांग्रेस ने मप्र में सरकार बनाई थी, तब सरकार में कोई भी राज्यमंत्री या स्वतंत्र प्रभार का मंत्री नहीं था। मंत्रिमंडल के सभी सदस्य कैबिनेट रैंक के मंत्री थे। विश्लेषकों के मुताबिक इसकी वजह कांग्रेस को पूर्ण बहुमत न मिलना था, क्योंकि कमलनाथ सरकार का गठन ही कुछ निर्दलीय विधायकों और छोटे दलों के विधायकों के समर्थन से हुआ था। ऐसे में ज्यादातर अहम विभागों का बंटवारा मंत्रियों के बीच हो गया। मुख्यमंत्री कमलनाथ को काफी कम विभागों से संतोष करना पड़ा। साल 1998 में जब दिग्विजय सिंह मप्र के सीएम बने थे तो उन्हें भी बिना विभाग वाला मुख्यमंत्री ही कहा जाता था। साल 2020 में कमलनाथ सरकार गिर गई। एक बार फिर शिवराज सिंह चौहान मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बैठे। लेकिन शिवराज ने गृह जैसा अहम विभाग दतिया के विधायक नरोत्तम मिश्रा को दे दिया था। उनके पास भी कम विभाग ही रहे।
हालांकि, मोहन यादव के नेतृत्व वाली भाजपा की सरकार प्रचंड बहुमत से बनी है। इस चुनाव में भाजपा को 163 सीटें मिली हैं तो कांग्रेस सिर्फ 66 सीटें हासिल कर सकी है। ऐसे में मोहन यादव इस प्रचंड बहुमत वाली सरकार की कमान बेहद आत्मविश्वास के साथ संभालते दिख रहे हैं। इसमें दो राय नहीं है कि मंत्रिमंडल के गठन में 22 दिनों का समय लगा। प्रचंड बहुमत वाले दल को इस काम में इतना वक़्त नहीं लगना चाहिए था। फिर विभागों के बंटवारे में भी पांच दिन लगे। इस बीच मप्र के नेता और ख़ास तौर पर मुख्यमंत्री मोहन यादव दिल्ली की दौड़ लगाते रहे। जानकार कहते हैं कि ऐसा इसलिए हुआ क्योंकि इस बार पार्टी के कई दिग्गज नेताओं ने चुनाव लड़ा और वो जीतकर आए। इनमें दो केंद्रीय मंत्री और संगठन के केंद्रीय महासचिव भी शामिल हैं।