मंत्रालय के कामकाज में तेजी एवं पारदर्शिता लागू करने सरकार ने 6 साल पहले ई-ऑफिस की व्यवस्था ( e-office)शुरू की गई थी, लेकिन उसका क्रियान्वयन आज तक नहीं हो पाया है। इस कारण आज भी मंत्रालय में फाइलें मैनुअल ही चल रही है। ऐसे में कौन सी फाइल कहां है इसका पता लगाना मुश्किल हो जाता है। जबकि प्रदेश में ई-ऑफिस सिस्टम की बात करें तो मप्र राज्य निर्वाचन आयोग राज्य मंत्रालय समेत अन्य सरकारी कार्यालयों के लिए मिसाल बन गया है। राज्य निर्वाचन आयोग में ई-ऑफिस सिस्टम लागू हो गया है। यहां फाइलों का मूवमेंट ऑनलाइन किया जा रहा है। खास बात यह है कि आयोग ने उपलब्ध संसाधनों में यह कारनामा कर दिया है। ई-ऑफिस सिस्टम लागू करने के लिए आयोग ने अतिरिक्त संसाधन जुटाने पर एक रुपया भी खर्च नहीं किया। इसके उलट प्रदेश में दो सरकारें बदल गई, लेकिन मंत्रालय समेत अन्य सरकारी कार्यालयों में ई- ऑफिस सिस्टम लागू नहीं हो पाया।
गौरतलब है कि मंत्रालय में वर्ष 2017 से ई-ऑफिस सिस्टम लागू करने की कवायद चल रही है। इसके लिए नए कंप्यूटर और स्कैनर खरीदे गए थे। अपर मुख्य सचिव से लेकर सहायक ग्रेड एक तक के कर्मचारियों को राष्ट्रीय सूचना केंद्र (एनआईसी) के माध्यम से सॉफ्टवेयर का प्रशिक्षण दिया गया था। शिवराज सरकार के पिछले कार्यकाल में मार्च, 2018 में मंत्रियों को भी इसका प्रशिक्षण भी दिया गया था और यह भी तय हुआ था कि कैबिनेट का एजेंडा भी मंत्रियों को ऑनलाइन भेजा जाएगा, लेकिन न अधिकारियों ने और न ही मंत्रियों ने फाइलों के ऑनलाइन मूवमेंट में रुचि नहीं दिखाई। सरकार ने तय किया था कि मंत्रालय में ई-ऑफिस सिस्टम लागू होने के बाद पहले इसे विभागाध्यक्ष कार्यालयों में और फिर जिला कार्यालयों में लागू किया जाएगा। सामान्य प्रशासन विभाग के अधिकारियों का कहना है कि ई-ऑफिस सिस्टम से हर स्तर पर जवाबदेही तय हो जाएगी। मंत्रियों, अफसरों के सामने एक क्लिक पर फाइल उपलब्ध होगी। फाइल को आगे बढ़ाने के लिए हर स्तर पर अवधि तय है। इसके बाद भी फाइलें लंबित रहती हैं। इस व्यवस्था में हर फाइल का मूवमेंट ऑनलाइन होने से वरिष्ठ स्तर से पूछताछ भी की जा सकेगी। इस व्यवस्था से यह भी पता चलता रहेगा की फाइल किस स्तर पर कब से लंबित है।
ठंडे बस्ते में ई-ऑफिस व्यवस्था
मंत्रालय के सूत्रों का कहना है कि वर्ष 2018 में ई-ऑफिस व्यवस्था लागू करने के निर्णय के कुछ महीने बाद ही सरकार विधानसभा चुनाव की तैयारी में जुट गई और यह सिस्टम ठंडे बस्ते में डाल दिया गया। दरअसल, अधिकारियों-कर्मचारियों के कम्प्यूटर पर काम करने में पारंगत नहीं होने की वजह से फाइलों की गति धीमी पड़ गई थी। इससे निर्णय लेने की प्रक्रिया में विलंब होने का जोखिम सरकार चुनाव के वक्त नहीं उठाना चाहती थी, इसलिए तत्कालीन मुख्य सचिव बीपी सिंह ने इसे ऐच्छिक कर दिया था। जबकि इस व्यवस्था को लागू करने सभी विभागों में कम्प्यूटर और स्कैनर पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध हो चुके हैं। ई-ऑफिस सिस्टम लागू होने से मंत्रालय में फाइलों की रफ्तार बढ़ जाएगी। क्योंकि हर फाइल के लोकेशन अपडेट रहेगी। ई प्रणाली में लिपिक से लेकर मख्ुय सचिव तक फाइल को निपटाने की समय-सीमा तय है। बिना किसी कारण के फाइल को नहीं रोका जा सकेगा। पिछले साल ई-ऑफिस पर सामान्य प्रशासन विभाग ने अन्य विभागों से बेहतर काम किया था। लेकिन अन्य विभाग फिसड्डी रहे। एक बार कोई भी दस्तावेज इसमें आ गया तो फिर चाहकर भी इसमें छेडख़ानी नहीं कर सकेगा।
कागजी रिकॉर्ड रखने की समस्या होगी खत्म
ई-ऑफिस शुरू होने के बाद कागजी रिकॉर्ड रखने की समस्या खत्म हो जाएगी और हर साल हजारों टन कागज की बचत होगी। डाटा सुरक्षित रखने दो डाटा सेंटर बनेंगे। दूसरा डाटा सेंटर प्रदेश के बाहर बनेगा। यदि युद्ध, प्राकृतिक आपदा या अन्य किसी स्थिति में एक डाटा सेंटर नष्ट होगा है,तब दूसरे डाटा सेंटर से डाटा रिकवर किया जा सकेगा।
अधिकारियों को नहीं लगानी पड़ेगी दौड़
ई-ऑफिस सिस्टम में हर फाइल ट्रेस करना आसान है। संबंधित विभाग का अधिकारी या कर्मचारी किसी भी फाइल की लोकेशन ट्रेश कर सकता है। फाइल ओके होने के बाद उसमें किसी भी तरह की छेड़छाड़ नहीं हेागी। लिपिक से लेकर मुख्य सचिव एवं मुख्यमंत्री तक फाइल निपटाने की समय-सीमा तय है। फाइल समय पर नहीं करने के लिए कारण भी बताना होगा। ई-ऑफिस की खास बात यह है कि किसी भी इमरजेंसी में एक ऑफिस से दूसरे ऑफिस में अधिकारियों को फाइल लेकर दौड़ना नहीं पड़ेगा। एक क्लिक पर फाइल ओके होगी। यदि फाइल तत्काल कॉल बैक करनी है तो संबंधित कर्मचारी अधिकारी को एसएमएस से इसकी सूचना मिल जाएगी। इतना ही नहीं अधिकारी दुनिया के किसी भी हिस्से में रहकर भी लेपटॉप पर फाइल ओके कर सकते हैं।
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