मोहन यादव की पूरी कैबिनेट का गठन हुए 67 दिन हो चुके हैं लेकिन इस दौरान मोहन सरकार अपने मंत्रियों को प्रभार के जिले देने का काम नहीं कर सकी है। इसका असर अब सरकार के कामकाज में भी दिखने लगा है। ऐसा ही मामला 31 मार्च को खत्म हो रहे वित्त वर्ष के पहले सांसदों और विधायकों को मिलने वाली जनसंपर्क निधि के उपयोग को लेकर सामने आया है जिसके लिए प्रभारी मंत्री की ओर से राशि जारी किए जाने का प्रावधान है। इसलिए अब प्रभारी मंत्री के पावर कलेक्टरों को ट्रांसफर किए गए हैं।
चूंकि 13 दिसम्बर को शपथ लेने के बाद 73 दिनों की मोहन सरकार में जिलों में प्रभारी मंत्री नहीं बनाए गए हैं। इसलिए हर विधानसभा के लिए सांसदों और विधायकों को मिलने वाली जनसंपर्क निधि की राशि के वितरण के पावर सामान्य प्रशासन विभाग (जीएडी) द्वारा कलेक्टरों को दिए गए हैं। जीएडी ने इसको लेकर जारी आदेश में कहा है कि वर्ष 2023-24 के जनसंपर्क निधि की राशि वितरण के अधिकार कलेक्टरों को दिए जाते हैं। गुरुवार को जारी इस आदेश के बाद अब कलेक्टर सांसदों और विधायकों की ओर से जनसंपर्क निधि के अंतर्गत राशि आवंटित करने को लेकर की जाने वाली अनुशंसा के आधार पर राशि वितरण का निर्णय ले सकेंगे।
प्रभारी मंत्री से जुड़े अन्य काम भी प्रभावित
प्रभारी मंत्री की जो व्यवस्था शिवराज सरकार के कार्यकाल में लागू रही है उसमें जिला स्तर पर डीएमएफ, जिला योजना समिति समेत अन्य जिला स्तरीय समितियों की अध्यक्षता प्रभारी मंत्री द्वारा की जाती रही है। इसके साथ ही जिला स्तर पर किए जाने वाले तबादले, कानून-व्यवस्था और बड़े निर्माण कार्यों से संबंधित प्रस्तावों को मंजूरी देने का काम भी प्रभारी मंत्री की अध्यक्षता में होने वाली जिला स्तरीय बैठकों में किया जाता रहा है। इसके साथ ही संगठनात्मक बैठकों में भी प्रभारी मंत्री की अध्यक्षता महत्वपूर्ण रही है। प्रभारी मंत्री को जिला स्तर पर आम जन जीवन से जुड़ी हर एक्टिविटी का ध्यान रखने और उसमें सरकार की भागीदारी करने की जिम्मेदारी रहती आई है। प्रभारी मंत्री नियुक्त नहीं होने से ये सभी काम भी प्रभावित हो रहे हैं और कलेक्टर अपने स्तर पर ऐसे मामलों में निर्णय कर रहे हैं।